कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान
मेरा भारत महान ,
मेरा भारत महान ,
जो बोलते थकती नहीं ज़ुबान ,
क्या सच में हुआ उत्थान ,
या हुआ काग़जी काम ,
और कहते रह गए हम ,
मेरा भारत महान ,
मेरा भारत महान |
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान ,
हर चौराहें लुटा जहाँ, द्रौपदी का मान ,
हर कोई आज भी ,िहंदु या मुसलमान ,
ना मंिदरों का आदर , ना मस्िजदों की शान ,
हर गरीब के खून से बनते, बंगले आिलशान ,
राष्ट्रभाषी आज भी, कहलाता मूर्ख महान ,
धर्म, सत्य, अिहंसा, जहाँ सजातें िसर्फ िदवार ,
भगत, सुभाष भी पुजे जाते, साल में िसर्फ एक बार ,
सच्चाई जहाँ नत्मस्तक हो, लगाती िसर्फ गुहार ,
राम कैद पडे मंिदर में, रावण करते िवहार ,
कृष्ण वाणी सुननें को, कहाँ कर्मयोगी पार्थ ,
ना गुरू, ना िशष्य, बना िशक्षा एक व्यापार ,
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान ,
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान |
मेरा भारत महान ,
जो बोलते थकती नहीं ज़ुबान ,
क्या सच में हुआ उत्थान ,
या हुआ काग़जी काम ,
और कहते रह गए हम ,
मेरा भारत महान ,
मेरा भारत महान |
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान ,
हर चौराहें लुटा जहाँ, द्रौपदी का मान ,
हर कोई आज भी ,िहंदु या मुसलमान ,
ना मंिदरों का आदर , ना मस्िजदों की शान ,
हर गरीब के खून से बनते, बंगले आिलशान ,
राष्ट्रभाषी आज भी, कहलाता मूर्ख महान ,
धर्म, सत्य, अिहंसा, जहाँ सजातें िसर्फ िदवार ,
भगत, सुभाष भी पुजे जाते, साल में िसर्फ एक बार ,
सच्चाई जहाँ नत्मस्तक हो, लगाती िसर्फ गुहार ,
राम कैद पडे मंिदर में, रावण करते िवहार ,
कृष्ण वाणी सुननें को, कहाँ कर्मयोगी पार्थ ,
ना गुरू, ना िशष्य, बना िशक्षा एक व्यापार ,
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान ,
कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान |
-- चेतन भादरीचा
8 Comments:
@ravindra : yes i agree to u ... but lets not get carried away by just the positives .. lets see out negatives n perform our duties to rectify them as well
By Anonymous, at 6:07 AM
This comment has been removed by a blog administrator.
By Ships, at 12:59 AM
nice poem... i'd still love to believe tat mera bhaarat mahaan. :)
By Ships, at 1:19 AM
@ships : even i beleive in "Mera Bharat Mahan", but lets accept a few deficiences n work towards solving them
By Chetan Bhadricha, at 1:21 AM
u have definitely composed it beautifully...
but will like to give you one suggestion... expecting ur next blog with few steps that you can suggest to really make "Mera Bharat Mahan"
Lets not crib more about things that are bad... Lets see what we can do to make it BETTER !!!
By Anonymous, at 6:57 AM
Gr8 choice of language for the poem...I dont think it will have the same effect in any other language.
By Sumo, at 8:57 AM
In 2 stanzas you have brilliantly put where we wanted to go and where we are going. I would appreciate if you can write a similar rhyme on Satyameva Jayate. Although it would be redundant, I would love to read it! :) And yes don't get discouraged by those who say "Enough of criticizing, let's do something!" "it ain't that bad situation" Along with cribbing people are saying this too since 16th August 1947! What you are doing is awakening the uninformed ones. Keep lighting the candles in the darkness of jingoism. Soon there will be light. People will know what is WRONG and what is right!
By Anonymous, at 8:24 AM
good work keep it up...
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By Anonymous, at 6:27 AM
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